जब से हम तेरे हसीन इश्क़ के पहरे में रहने लगे, भूल गए हम खुद को ही खुद से जुदा से होने लगे। अब रास नहीं आती हैं मुझे दुनियाँ की रंगीनियाँ, शाम -ओ- पहर तेरे ख्वाबों में ही खोए रहने लगे। दिल चाहता ही नहीं तेरे इश्क से बाहर निकलना, मेरे अरमाँ तेरे इश्क़ के समंदर में ही डूबे रहने लगे। मुसलसल दुआओं में माँगते हैं बस एक तुमको ही, हर पल मेरे रूबरू रहे तू बस यही ख्वाहिश करने लगे। "एक सोच"की जिंदगी में आकर तूने जिंदगी बदल दी, मानकर तुझको अपना खुदा तेरी इबादत हम करने लगे ♥️ Challenge-527 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।