ज़िंदगी को मौत फिर समझा रही है... प्यास ले जा बेवजह तड़पा रही है..। इंतज़ार को वापस लौटना न पडे़... राह पर लगी आँखें शरमा रहीं है..। नींद को यॆ ख़्वाब धोखा दे रहॆ हैं... एक उम्मीद हमको बहला रही है..। एक से एक रिश्तें थे ज़िंदगी के... और मौत तो बिलकुल तनहा रही है..। महँगा निकला नज़र-अंदाज़ करना... वो गया मगर उसकी चर्चा रही है..। - ख़ब्तुल संदीप बडवाईक ©sandeep badwaik(ख़ब्तुल) 9764984139 instagram id: Sandeep.badwaik.3 तनहा