review " Gandhi chouk " ©Anil Malviya Review " गांधी चौक " यह कहानी छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के" गांधी चौक " जो पीसीएस परीक्षा के संघर्ष का प्रतीक है, हजारों बच्चे हर वर्ष वहां पीसीएस अधिकारी के सपने लिए हुए दिन-रात अपने संघर्ष से अधिकारी बनने का सपना लिए आते हैं , बहुत सारे अभ्यार्थी कैसे अभावो में अपने संघर्ष को जारी रखते हैं, यह कहानी बताती है कि सफलता के लिए कर्म जरूरी है, गुणसूत्र नहीं। यह उपन्यास दो कहानियां के समानांतर चलता है। 👉 एक तरफ अश्विनी जो आंखों में पीसीएस अधिकारी बनने का सपना लिए हुए गांधी चौक पहुंचता है और वह काम और पढ़ाई दोनों एक साथ करके संघर्ष जारी रखता है और भीष्म भैया उसका मार्गदर्शन करते है , भीष्म भैया का किरदार जरूर आकर्षित करता है, उनका व्यवहारिक दृष्टिकोण और समर्पित तैयारी के माध्यम से सफलता प्राप्त कि जा सकती है , और एक किरदार रामप्रसाद जो असफलता के बाद भी अपने संघर्ष को जारी रखता है और सफलता प्राप्त करता है 👉 दूसरी ओर नीलिमा सूर्यकांत और राजा भैया .. सूर्यकांत एक बहुत बड़े बिजनेसमैन का बेटा होता है ,जो अपने जीवन में भटका का होता है , नीलिमा के आकर्षण के कारण सूर्यकांत सुधार की प्रवृत्ति में नजर आता है, नीलिमा और सूर्यकांत एक दूसरे से प्यार करते हैं , ओर फिर वह भी पीसीएस की तैयारी करते हैं । कहानी कई सारी घटनाओं और विवरणों से आगे बढ़ती हैं और अंत में सारे किरदार एक ही दायरे में नजर आते है ।। कहानी में तत्कालीन समय की स्थिति पीसीएस परीक्षा की अनियमितता ,स्केलिंग पद्धति और छात्र संघर्ष को बताती है। और सूर्यकांत और नीलिमा दोनों की प्रेम कथा एक अलग मोड़ पर जाकर दोनों जीवन साथी के बनते हैं, जो कहानी को रोचकता देता है। लेखक कई व्यंगात्मक और दार्शनिक दृष्टिकोण से कहानी को प्रस्तुत करते हैं । 👉इस उपन्यास में कुछ घटनाएं, विवरण और संयोग कहानी को कमजोर करते हैं , कहीं कहीं कहानी अपने फिल्मी रूप में उभर कर सामने आती है , कत्थायात्मक रूप से भी कुछ त्रुटियां और किरदारों की नैतिकता और वास्तविकता में बहुत बड़ा फर्क नजर आता है... किरदार कई बार विरोधाभासी नजर आते है । कहानी अपने मूल उद्देश्य से भी भटकती हुई प्रतीत होती है और कई कई पर लेखन कला अतिशयोक्ति और अस्पष्टता के रूप में नजर आती है।।