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अरसा हुआ देखे उसे, नजर से कभी, वो उतरा नहीं। ना आए

अरसा हुआ देखे उसे,
नजर से कभी, वो उतरा नहीं।
ना आए पलक पर,
वो मुस्काते हुए!
एक पल ऐसा, कभी गुजरा नहीं।
है मेरा अर्धांश फिर भी!
है मेरा अपना नहीं। 
है मेरी वो भोर लेकिन,
शाम हो सकता नहीं!
है परस्पर प्रेम लेकिन,
व्यक्त हो सकता नही।
है मेरा अर्धांश फिर भी!
है मेरा अपना नहीं।
है किस्मत का खेल ये, या 
है माधव का ज्ञान कोई,
क्यों सफर धुंधला सा है,
क्यों मन में है संग्राम कोई।
है मेरा अर्धांश फिर भी!
है मेरा अपना नही...
@indian_निश्छल

©Nischhal Raghuwanshi #CityWinter 
#Night_thought
अरसा हुआ देखे उसे,
नजर से कभी, वो उतरा नहीं।
ना आए पलक पर,
वो मुस्काते हुए!
एक पल ऐसा, कभी गुजरा नहीं।
है मेरा अर्धांश फिर भी!
है मेरा अपना नहीं। 
है मेरी वो भोर लेकिन,
शाम हो सकता नहीं!
है परस्पर प्रेम लेकिन,
व्यक्त हो सकता नही।
है मेरा अर्धांश फिर भी!
है मेरा अपना नहीं।
है किस्मत का खेल ये, या 
है माधव का ज्ञान कोई,
क्यों सफर धुंधला सा है,
क्यों मन में है संग्राम कोई।
है मेरा अर्धांश फिर भी!
है मेरा अपना नही...
@indian_निश्छल

©Nischhal Raghuwanshi #CityWinter 
#Night_thought