अपनों की खुशी के खातिर मैं अपनी खुशी छोड़ निकला मां पिता , बीवी बच्चे मैं अपना परिवार छोड़ निकला अपनों की खुशी के खातिर मैं अपनों को अकेला छोड़ निकला अपनों की खुशी के खातिर मैं अपनी खुशी को छोड़ निकला । तपती धूप हो या सर्दी का मौसम छाई हो घटा काली या हो तूफ़ां का आलम अपनों के सुकूँ के खातिर मैं अपना सुकूँ छोड़ निकला मैं अपनी खुशी छोड़ निकला । अपनों के सपनों के आगे मैंने अपने सपनों को कुचला अपनों की इच्छाओं के आगे मैंने अपनी इच्छाओं का दम तोड़ा पूरा करने अपनों की मांगें मैं अपनी चाहतों को छोड़ निकला मैं अपनी खुशी छोड़ निकला । बनाने को एक घर अपना मैं अपने ही घर को छोड़ निकला दो वक्त की रोटी के खातिर मैं बाजार में खुद को बेचने निकला मैं अपनी खुशी छोड़ निकला मां-बाप बीवी बच्चे मैं अपना परिवार छोड़ निकला मैं अपनी खुशी छोड़ निकला ।। Prashant #footsteps एक कविता "मैं अपनी ख़ुशी छोड़ निकला" उन सभी के लिए जो बख़ूबी अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं DEVENDRA KUMAR (देवेंद्र कुमार) 🙏 #apain of responsible person