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बोल मधुर हों प्रेम के, जग अपना हो जाय। नफ़रत वाल

बोल मधुर हों प्रेम के, जग अपना हो जाय। 
नफ़रत  वाले  बोल  से, अनचाहे  झगड़ाय।। 

ग़लत नीति पर राज्य को, कर विरोध चेताय। 
देश  विरोध  न  आड़  में, भूले  से  हो  जाय।। 

दल विरोध की आड़ ले, राष्ट्र से मत कर द्रोह।
निरलज  अंधा  द्रोह  में,  बनत  देश - विद्रोह।।

©Shiv Narayan Saxena #देश_की_बात कैसा और कितना विरोध  poetry in hindi
बोल मधुर हों प्रेम के, जग अपना हो जाय। 
नफ़रत  वाले  बोल  से, अनचाहे  झगड़ाय।। 

ग़लत नीति पर राज्य को, कर विरोध चेताय। 
देश  विरोध  न  आड़  में, भूले  से  हो  जाय।। 

दल विरोध की आड़ ले, राष्ट्र से मत कर द्रोह।
निरलज  अंधा  द्रोह  में,  बनत  देश - विद्रोह।।

©Shiv Narayan Saxena #देश_की_बात कैसा और कितना विरोध  poetry in hindi