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दो वक्त की रोटी कमाने गया था शहर कि शहर में घुसते

दो वक्त की रोटी कमाने गया था शहर 
कि शहर में घुसते ही हम गुमराह हो गए
भीड़ का मेला तो था पर कोई अपना न था वहां 
ऊंची ऊंची इमारतें तो थीं पर घर जैसा सुकून न था वहां
कम्बख़त जिस शहर में पैसे कमाने गया था उसी शहर में बिन पैसे के एक वक्त का भी गुजारा न था वहां
शहर  मदहोश की दुनिया है मेरा गांव सुकून की दुनिया है।

©Vandana Mishra
  #City जो सुकून गांव में वो सुकून शहर‌ में कहां

#City जो सुकून गांव में वो सुकून शहर‌ में कहां #ज़िन्दगी

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