मेरी खामोशी मुझे खा गई ये जुदाई अंदर से खा गई यू तो पलट कर मैन भी उसे नही देखा ना जाने क्यों उसकी याद मुझे रुला गई जमाने में , जमाने से ,जमाना केहेन लगा है दिल से लिये फेशले पे ,दिल रोने लगा है यू तो कई आई , और है कई गई जिसका नाम लेना पाप है वो फिर आग के आँशु रुला गई बदनाम हुवे हैं उनके नाम से जो अब हमारी नही रही कौन कहता है तुमसे मेरी नफरत गहरी नही रही यू तो तुम्हारा नाम लेने की नही है रुषवाई तुम्हें वेहम है कि तुम पे लिखता हूँ कलम खामोश के उठाने से लिखी है कहानी नई Suman Zaniyan