जागो ग्राहक जागो.... लोकतंत्र में लगे हैं चोर दिखा कर सपने कुछ झूठे कुछ आधे लेकर अपनी छान पगहिया जो भाग सको तो जल्दी भागो जागो ग्राहक जागो.... (पूरी कविता कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें).. बौने नेताओं की पर्वत सी आकांक्षाएं लोकतंत्र पर बोझ हैं जनता आपस में लड़े, भिड़े कट मर जाए बस नेताओं को करनी मौज है कहते हैं -ज्यादा चीखो चिल्लाओ मत अभी बहुत कच्चे हो