अक़्सर मैं देखता हूँ बिछड़ते हुए को जैसे पेड़ से धीरे-धीरे पत्ता गिरता है और पृथ्वी के पास चला जाता है उड़ती पतंग कट कर लहराते हुए धरती की गोद में चली जाती है बादल से निकल कर बारिश की बूँदें अक़्सर धरती में समा जाती हैं नदियाँ भी जमीँ पर बहते-बहते सागर से जा मिलती हैं मानव भी एक दिन चलते-चलते पंचतत्त्व में विलीन हो जाता है सब छोड़ कर जाते हैं एक दिन किसी दूसरे के पास यह देखकर सोचता हूँ तुम भी तो ऐसे ही चली गयी एक दिन उसके पास..... ©शुभम द्विवेदी #freebird छोड़ कर जाना लव शायरी लव रोमांटिक लव शायरी