वैसे तो लगती हैं कई ठोकरें जीवन भर हमें लगती रहती हैं, बहुत सी ठोकरें अंजाने में, लेकिन लोगों को तो मजा आता है, कुछ खोकर पाने में । उनका क्या है, जिन्हें पहले से ही मिल गया है सबकुछ, अब उन लोगों को मजा आता है, केवल आनंद उठाने में । दुनिया में ना जाने सभी की, कितनी ज्यादा तकलीफ़ें और मजबूरियाँ हैं, लेकिन किसी को भी अब मजा नहीं आता, दूसरों का हाथ बटाने में । अब तो सब जीना सीख रहे हैं, अपने और अपने परिवार के लिए ही केवल, अब किसी दूसरे व्यक्ति की फिक्र कौन करता है, इस ज़ालिम मतलबी जमाने में । अब तो कोई भी इंसान नहीं बाँटना चाहता है, किसी दूसरे का दुःख - दर्द, चाहे किसी के घर में कोई भी व्यक्ति जी रहा हो, या मर रहा हो इस जमाने में । इस तरह एक - दूसरे से दूर होना तो, मानों पूरी मानवता से ही दूर होना है, लेकिन मानवता की खातिर, अब कौन काम करना चाहता है इस जमाने में । हम भी तो बैठे हैं ना जाने कब से, अपने किसी ख़ास के इंतज़ार में, कोई तो आकर हमसे मिल ले और हमें अपना बनाले इस जमाने में । उम्र भर लगती रहती हैं हर किसी को, बहुत सी ठोकरें अंजाने में, लोग अपनी गलतियों से फिर भी, क्यूँ नहीं सीखना चाहते हैं इस जमाने में । - Devendra Kumar (देवेंद्र कुमार) # वैसे तो लगती हैं कई ठोकरें