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एक अरसा हो गया जिंदगी को खुलकर जिए हुए अपनी मुस्का

एक अरसा हो गया जिंदगी को खुलकर जिए हुए
अपनी मुस्कान को , होंटों पर सीए हुए

कैसे बीत गया वो दौर,जब सब कुछ आसान
सा लगता था, कोई बैगना भी अपना सा
लगता था

वक्त इतना था की, गुजार लेते थे मौज से 
फिक्र तो जैसे अपनी जिंदगी की किताबों 
से ही, गुम था

हैरानी नहीं होती थी की समय कैसे कट जाता था
मौज से, परेशानी की शिकन तो कभी माथे पर
बल ही नही देती थी

एक अरसा बीत गया, चेहरे पर अपने शिकन न
देखे हुए, बुझा हुवा अब जानें क्यों चहेरा लगता
है,

उम्र गुजर रही है, बड़ी तेजी से सांसों के टूटने
का अब डर लग रह है,एक अरसा बीत गया
डर को भुलाकर जिए हुए

©पथिक..
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