Nojoto: Largest Storytelling Platform

खून का नहीं बल्कि भावनाओं का रिश्ता है, एक फरिश्ता

खून का नहीं बल्कि भावनाओं का रिश्ता है,
एक फरिश्ता अपनों से बेहतर दोस्त ही होता है!

©Sandeep Kothar खून का नहीं बल्कि भावनाओं का रिश्ता है,
एक फरिश्ता अपनों से बेहतर दोस्त ही होता है!

दोस्त,
जब भी कोई व्यक्ति अज्ञात के साथ अपनेपन और सहानुभूति की भावना महसूस करता है, तो वह स्वतः ही उसे मित्र कहता है।

युग आज भी कृष्ण और सुदामा की मित्रता को याद करता है, इसलिए मित्रता में जाति, धर्म, पंथ, ऐसा कुछ भी नहीं होता।
खून का नहीं बल्कि भावनाओं का रिश्ता है,
एक फरिश्ता अपनों से बेहतर दोस्त ही होता है!

©Sandeep Kothar खून का नहीं बल्कि भावनाओं का रिश्ता है,
एक फरिश्ता अपनों से बेहतर दोस्त ही होता है!

दोस्त,
जब भी कोई व्यक्ति अज्ञात के साथ अपनेपन और सहानुभूति की भावना महसूस करता है, तो वह स्वतः ही उसे मित्र कहता है।

युग आज भी कृष्ण और सुदामा की मित्रता को याद करता है, इसलिए मित्रता में जाति, धर्म, पंथ, ऐसा कुछ भी नहीं होता।