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White तुम जो क़ातिल न मसीहा ठहरे न इलाज-ए-शब-ए-हिज

White तुम जो क़ातिल न मसीहा ठहरे
न इलाज-ए-शब-ए-हिज्राँ न ग़म-ए-चारागराँ
न कोई दुश्ना-ए-पिन्हाँ
न कहीं ख़ंजर-ए-सम-आलूदा
न क़रीब-ए-रग-ए-जाँ
तुम तो उस अहद के इंसाँ हो जिसे
वादी-ए-मर्ग में जीने का हुनर आता था
मुद्दतों पहले भी जब रख़्त-ए-सफ़र बाँधा था
हाथ जब दस्त-ए-दुआ थे अपने
पाँव ज़ंजीर के हल्क़ों से कटे जाते थे
लफ़्ज़ तक़्सीर थे
आवाज़ पे ताज़ीरें थीं
तुम ने मासूम जसारत की थी
इक तमन्ना की इबादत की थी
पा बरहना थे तुम्हारे
यही बोसीदा क़बा थी तन पर
और यही सुर्ख़ लहू के धब्बे
जिन्हें तहरीर-ए-गुल-ओ-लाला कहा था तुम ने
हर नज़्ज़ारा पे नज्ज़ारगी-ए-जाँ तुम को
हर गली कूचा-ए-महबूब नज़र आई थी
रात को ज़ुल्फ़ से ताबीर किया था तुम ने
तुम भला क्यूँ रसन-ओ-दार तक आ पहुँचे हो
तुम न मंसूर न ईसा ठहरे

©Jashvant
  आखिर क्यों? R... Ojha NAZAR Raunak PФФJД ЦDΞSHI Geet Sangeet
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Jashvant

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