कभी चट्टानों से तो कभी सिलाओं से टकराकर, कभी हवा बन चकराती हु, कभी लहारों मे बह जाती हु, हा यही मेरी जिंदगी है खेल की तरह खेलती हु इसे, हार कई मिली हैँ इसमे, पर मै भी जीत क़े हार का चाव जानती हु, मंजिल तक पहुँचाना है मुझे, जा करले जो करना है तुझे, मै भी अंगद का पैर गड़ा कर यही खड़ी हु Dedicated for someone special! ©Priya Godiyal #Love yourself