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स्वयं को समझाइए मनुष्य इसलिए श्रेष्ठ प्राणी माना ज

स्वयं को समझाइए मनुष्य इसलिए श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है क्योंकि उसने अपने विकास क्रम में सॉफ्टवेयर संस्कृति आध्यात्मा और कला आदि का विकास किया है वह संतृप्ति विचारों को साकार करने की सामर्थ्य भी रखता है इसके परिणाम स्वरूप संसार में अनेक विचारों धामों सभ्यताओं और संस्कृतियों ने जन्म लिया है यह बहुल संस्कृतिक था और सभ्यताओं की व्यवस्था मनुष्य के चिंतनशील और सृजनशील होने के परिचायक है चिंतन की वैधता और दृष्टिकोण की विवेचना अदाओं ने संसार में अनेक कलाओं परंपराओं सभ्यताओं आदि को विकसित किया है इस दृष्टि से देखें तो यह सारा संसार मनुष्य के विचार समर्थ्य के ही अभिव्यक्त है जबकि एक पशु के लिए इस संसार की भौतिक उपलब्धता मात्र जैविक आवश्यकता हो तक सीमित है कोई पशु केवल इंद्रियां इंद्रियां आधारित ज्ञान को ही प्राप्त कर सकता है जबकि मनुष्य के पास इंद्रिय अनुभूतियों के साथ चिंतन के आधार पर नवीन ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता होती है मनुष्य सत्य शिव और सुंदर जैसी अमूल्य की प्राप्ति कर सकता है वह प्राकृतिक और सामाजिक नियमों से ऊपर आध्यात्मिक नियमों के आधार पर अपने लिए एक विराट आनंद पूर्ण विश्व का सर्जन कर सकता है इस दृष्टि से मनुष्य पूर्ण है लेकिन कई बार वह ज्ञान और शक्ति का अनंत भंडार होते हुए भी स्वयं को ज्ञान हीन और शक्ति ही समझता है ऐसा उसकी अज्ञानता के कारण है वह स्वयं को एक साधारण मनुष्य के रूप में देखता है इसकी आकांक्षाएं शरीफ बहुत ही है वास्तव में मनुष्य भौतिक तत्वों का सीमित नहीं है बल्कि एक आदर्श और विचारों का सम्मिश्रण है यदि हम सच्ची मनुष्यता प्राप्त करनी है तो हमें शारीरिक सुख भौतिक उपलब्धियों से आगे बढ़कर कार्य करना होगा इसके लिए हमें दूर प्राणियों की प्राप्ति अपने कर्तव्य सामाजिक मूल्यों धर्म और नीति द्वारा स्थापित आदेशों के रूप में स्वयं को संगठित करना होगा

©Ek villain #soham_rabari_ 

#Ocean
स्वयं को समझाइए मनुष्य इसलिए श्रेष्ठ प्राणी माना जाता है क्योंकि उसने अपने विकास क्रम में सॉफ्टवेयर संस्कृति आध्यात्मा और कला आदि का विकास किया है वह संतृप्ति विचारों को साकार करने की सामर्थ्य भी रखता है इसके परिणाम स्वरूप संसार में अनेक विचारों धामों सभ्यताओं और संस्कृतियों ने जन्म लिया है यह बहुल संस्कृतिक था और सभ्यताओं की व्यवस्था मनुष्य के चिंतनशील और सृजनशील होने के परिचायक है चिंतन की वैधता और दृष्टिकोण की विवेचना अदाओं ने संसार में अनेक कलाओं परंपराओं सभ्यताओं आदि को विकसित किया है इस दृष्टि से देखें तो यह सारा संसार मनुष्य के विचार समर्थ्य के ही अभिव्यक्त है जबकि एक पशु के लिए इस संसार की भौतिक उपलब्धता मात्र जैविक आवश्यकता हो तक सीमित है कोई पशु केवल इंद्रियां इंद्रियां आधारित ज्ञान को ही प्राप्त कर सकता है जबकि मनुष्य के पास इंद्रिय अनुभूतियों के साथ चिंतन के आधार पर नवीन ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता होती है मनुष्य सत्य शिव और सुंदर जैसी अमूल्य की प्राप्ति कर सकता है वह प्राकृतिक और सामाजिक नियमों से ऊपर आध्यात्मिक नियमों के आधार पर अपने लिए एक विराट आनंद पूर्ण विश्व का सर्जन कर सकता है इस दृष्टि से मनुष्य पूर्ण है लेकिन कई बार वह ज्ञान और शक्ति का अनंत भंडार होते हुए भी स्वयं को ज्ञान हीन और शक्ति ही समझता है ऐसा उसकी अज्ञानता के कारण है वह स्वयं को एक साधारण मनुष्य के रूप में देखता है इसकी आकांक्षाएं शरीफ बहुत ही है वास्तव में मनुष्य भौतिक तत्वों का सीमित नहीं है बल्कि एक आदर्श और विचारों का सम्मिश्रण है यदि हम सच्ची मनुष्यता प्राप्त करनी है तो हमें शारीरिक सुख भौतिक उपलब्धियों से आगे बढ़कर कार्य करना होगा इसके लिए हमें दूर प्राणियों की प्राप्ति अपने कर्तव्य सामाजिक मूल्यों धर्म और नीति द्वारा स्थापित आदेशों के रूप में स्वयं को संगठित करना होगा

©Ek villain #soham_rabari_ 

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