ये तेरी भी इल्तिज़ा है जो मिली मुझे सजा है इतनी खबर है हमको इसमे तेरी भी रजा है ये षण्यत्रं जो रचा है ये रंग मच जो सजा है तेरे जिद मे जो भी आया तो फिर कहां कोई बचा है ना किया कोई कजा है ये मेरी ही खता है हद से ज्यादा भरोसा करने का ये अंजाम मुझे मिला है तेरी मेरी कहानी का कुछ ऐसा सिलसिला है मुरझा गया वो फूल अब तो किसी और खिला है ये तेरी भी इल्तिज़ा है जो मिली मुझे सजा है ©कर्म भक्त कवि [आशीष मिश्रा] sad poetry #Poetry #SAD