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महंगाई की मारी ये जनता बेचारी, पसीना बहाए, पर थाली

महंगाई की मारी ये जनता बेचारी,
पसीना बहाए, पर थाली है सारी खाली।

सब्ज़ी हो या दाल, दूध हो या प्याज,
हर चीज़ के दाम में लग रही आग।

खबरों में दिखाया जाता, सब कुछ है सरल,
महंगाई बस नाम की है, नहीं कोई झमेला।

अगर यही है नियंत्रण, तो सोचिए ज़रा,
अनियंत्रित हुई तो कैसा मचेगा हाहाकार!

आलू से लेकर पेट्रोल तक बढ़े हैं दाम,
जनता की उम्मीदें भी हुईं तमाम।

©Balwant Mehta  हिंदी कविता कविताएं
महंगाई की मारी ये जनता बेचारी,
पसीना बहाए, पर थाली है सारी खाली।

सब्ज़ी हो या दाल, दूध हो या प्याज,
हर चीज़ के दाम में लग रही आग।

खबरों में दिखाया जाता, सब कुछ है सरल,
महंगाई बस नाम की है, नहीं कोई झमेला।

अगर यही है नियंत्रण, तो सोचिए ज़रा,
अनियंत्रित हुई तो कैसा मचेगा हाहाकार!

आलू से लेकर पेट्रोल तक बढ़े हैं दाम,
जनता की उम्मीदें भी हुईं तमाम।

©Balwant Mehta  हिंदी कविता कविताएं
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Balwant Mehta

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