मुजरे के शौकीन भी देते है पगड़ी का वास्ता सजाते हैं रोज़ महफिलें और देखते तमाशा फेंकते हैं अशर्फी के जैसे नोट भी कसके तंज देते हैं गहरी चोट भी अपनी ही खोटी आदतें छुपाते हैं समाज से कुलीन कहलाना चाहते हैं और करवाते हैं मुजरे बबली गुर्जर ©Babli Gurjar कुलीन