दिल सुबकेगा ताउम्र तो इसकी तुष्टि कौन करेगा जो कर जाओगे लकीरों की लकीरों से बिछड़न फिर बताओ इस विग्रह प्रेम की पुन: पुष्टि कौन करेगा! मरू जंगल से होंगे सारे प्रेमपत्र इन पर निगाह वृष्टि कौन करेगा जो लूट ले जाओगे सबकी निगाहें हमसे दिलबर फिर बताओ इस परित्यक्त सी रूह पर दृष्टि कौन करेगा! तुमने तो बाँध ली बछल गठरी, मेरी तो मुष्टि भी कौन भरेगा ये जो तुम एक क्षण भर में कल्पों तक अकल्प कर रहे हो मुझे तो ये भी बताते जाओ इस अवस्था में मेरी विष्टि कौन करेगा ! अनुग्रह माँग कर रहा "आफताबी" तेरे रूष्ट चन्द्र वदन से जब राख हो जायेगी ये पंक्तियाँ तो सृष्टि कौन रचेगा अभी बसंत के माकूल उर्वर है कागज पर मेरा तेरा अंकन अब बताओ जब हो गई जमीं ये ऊसर तो फिर शब्द-कृष्टि कौन करेगा! तुष्टि- प्रसन्न पुष्टि- दृढ़, मजबूत विग्रह- टुकड़ा, विभक्त वृष्टि - बारिश बछल- प्रेम, वात्सल्य मुष्टि- मुट्ठी कल्प- युग अकल्प - कमजोर, क्षीण