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'खट्टी-मीठी यादें' यादों की संदूक से खंगाल रहे थ

'खट्टी-मीठी यादें' 
यादों की संदूक से  खंगाल रहे थे लफ़्ज़, 
मगर हाथ आईं तो  बस कुछ ख़ामोशियाँ,
जो अनकही  अनसुलझी सी दबी पड़ी थीं,
जैसे संभाल रही थीं दर्द की कुछ किर्चियाँ।

खट्टी-मीठी यादें  बिखरी पड़ी थीं यहाँ-वहाँ,
दिल सोच रहा था यूँ ढूँढ़ेंगे उन्हें कहाँ-कहाँ।
जो क़रीब होकर दूरियों में उलझी पड़ी थीं,
जैसे बना रही थीं  हिसाब की कुछ पर्चियाँ।

यादों की महक भी पहले सी थी बरक़रार, 
जैसे ऐसे क़द्रदान की उन्हें भी थी दरकार। 
जो पलकें बिछाके  उम्मीद लगाए पड़ी थीं, 
जैसे लगा रही थीं  प्यार की कुछ अर्ज़ियाँ। Rest Zone 'खट्टी-मीठी यादें'




#restzone #rztask42 #rzलेखकसमूह #यादें #sangeetapatidar #ehsaasdilsedilkibaat #yqdidi #rzhindi
'खट्टी-मीठी यादें' 
यादों की संदूक से  खंगाल रहे थे लफ़्ज़, 
मगर हाथ आईं तो  बस कुछ ख़ामोशियाँ,
जो अनकही  अनसुलझी सी दबी पड़ी थीं,
जैसे संभाल रही थीं दर्द की कुछ किर्चियाँ।

खट्टी-मीठी यादें  बिखरी पड़ी थीं यहाँ-वहाँ,
दिल सोच रहा था यूँ ढूँढ़ेंगे उन्हें कहाँ-कहाँ।
जो क़रीब होकर दूरियों में उलझी पड़ी थीं,
जैसे बना रही थीं  हिसाब की कुछ पर्चियाँ।

यादों की महक भी पहले सी थी बरक़रार, 
जैसे ऐसे क़द्रदान की उन्हें भी थी दरकार। 
जो पलकें बिछाके  उम्मीद लगाए पड़ी थीं, 
जैसे लगा रही थीं  प्यार की कुछ अर्ज़ियाँ। Rest Zone 'खट्टी-मीठी यादें'




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