सूरज सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक सा जलता देखोगे। अपनी हद रोशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे। मैं सदा तुम्हे समरसता का, इक पाठ नया सिखलाउंगा। खुद दीपक सा जल लूँगा मैं, तुमको रोशन कर जाऊँगा। है रीत जगत की कुछ ऐसी, क्षण में सोना क्षण में कांसा। हैं लोग बदलते पल-पल में, जैसे सकुनी का हो पासा। मैं इस परिवर्तन के जग में, खुद का इतिहास बनाऊंगा। या तो इतिहास बदल दूंगा, या तो इतिहास बन जाऊँगा। तुम मेरे क़दमों को कब तक, आगे बढ़ने से रोकोगे। तुम जितना मुझको रोकोगे, मुझे उतना आगे देखोगे। अपनी हद रोशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे। *बालकवि रजत त्रिपाठी* 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻 तुम कब तक मुझको रोकोगे