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प्रिय इरा, तुमसे ये उम्मिद न थी उनको,जिन्होने तुम्

प्रिय इरा,
तुमसे ये उम्मिद न थी उनको,जिन्होने तुम्हे ट्रोल किया,आखिर तुम कैसे भूल गई कि तुम उस देश की वासी हो जहाँ स्त्रियाँ साड़ियों के पिछे नंगी की जाती है।जहाँ एक लड़की ब्रा की लास्टिक और कमर की पतले पन की शिकार होती है।
इरा तुम ये कैसे भूल सकती कि तुम वहाँ की वासी हो जहाँ स्त्री दूसरो के कहने पर तजी जाती है,जहाँ स्त्री बेटी,बहू,बहन,पत्नी और माँ तो बन जाती है पर स्त्री कभी नहीं बन पाती,देखो तुमने बहूत गलत किया है क्योकि एक बाप,पुरूष और इन मर्दो को लात जो मारी है।तुम पिता के साथ सहज कैसे हो सकती अरे आमीर उन पिताओं जैसा क्यों नहीं बना जो सारा जीवन एक बेटी को इज्जत के तराजू में बैठा के रखता है,आमीर वो क्यों नहीं बन पाया जहाँ बेटिया बाप को देखते ही कोठियों में दुबक जाती है,आमीर वो पिता नहीं बन पाया जो बेटी को राजकुमार तो लाता है पर उस घर का नौकर बनाकर पति चरण ही धर्म का संदेश देकर भेंजता है,भले पति बेटी को दिन-रात बिस्तर से जमी तक लोटाता है,तुम वैसी पिता की बेटी नहीं बन पाई,
इरा तुम कैसे ये भूल गई कि ये वो समाज है जहाँ द्रौपदी लुटती रही दुःशासन के हाथों चीर से नंगी होती रही और वचन का खोल ओढ़े पाँच पति तमाशाबीन रहे,तुम कैसे ये भूल सकती??
तुम गलत हो इरा क्योकि तुम पिता में एक दोस्त,एक साथी,एक मित्र और एक बेहतर सलाहकार मानती हो खुद के पिता को,तुम सहज हो उन तमाम लड़कियों से जो एक घुड़की पर घर के अन्दर डर कर दुबक जाती है।
तुम गलत हो क्योकि एक बेटी,स्त्री का वास्तविक जीवन जी रही पर इरा तुमसे ज्यादा वो लिचड़ है जो एक पिता के पेट पर बेटी को देख गुद-गुदाने लगे अन्तरअंगो,जो एक पिता और पुत्री को एक साथ नहीं देख सकते। वो उस विष्ठा के समान है जो तुम्हे एक पुत्रि न जान तुम्हे गालिया और भद्दी मजाको के हवस समझने लगे,इरा तुम गलत होकर बहूत सही हो पर वो सही होकर सड़े हूए दुर्गंधित विष्ठा है।
#लक्ष्मी_गौतम

प्रिय इरा, तुमसे ये उम्मिद न थी उनको,जिन्होने तुम्हे ट्रोल किया,आखिर तुम कैसे भूल गई कि तुम उस देश की वासी हो जहाँ स्त्रियाँ साड़ियों के पिछे नंगी की जाती है।जहाँ एक लड़की ब्रा की लास्टिक और कमर की पतले पन की शिकार होती है। इरा तुम ये कैसे भूल सकती कि तुम वहाँ की वासी हो जहाँ स्त्री दूसरो के कहने पर तजी जाती है,जहाँ स्त्री बेटी,बहू,बहन,पत्नी और माँ तो बन जाती है पर स्त्री कभी नहीं बन पाती,देखो तुमने बहूत गलत किया है क्योकि एक बाप,पुरूष और इन मर्दो को लात जो मारी है।तुम पिता के साथ सहज कैसे हो सकती अरे आमीर उन पिताओं जैसा क्यों नहीं बना जो सारा जीवन एक बेटी को इज्जत के तराजू में बैठा के रखता है,आमीर वो क्यों नहीं बन पाया जहाँ बेटिया बाप को देखते ही कोठियों में दुबक जाती है,आमीर वो पिता नहीं बन पाया जो बेटी को राजकुमार तो लाता है पर उस घर का नौकर बनाकर पति चरण ही धर्म का संदेश देकर भेंजता है,भले पति बेटी को दिन-रात बिस्तर से जमी तक लोटाता है,तुम वैसी पिता की बेटी नहीं बन पाई, इरा तुम कैसे ये भूल गई कि ये वो समाज है जहाँ द्रौपदी लुटती रही दुःशासन के हाथों चीर से नंगी होती रही और वचन का खोल ओढ़े पाँच पति तमाशाबीन रहे,तुम कैसे ये भूल सकती?? तुम गलत हो इरा क्योकि तुम पिता में एक दोस्त,एक साथी,एक मित्र और एक बेहतर सलाहकार मानती हो खुद के पिता को,तुम सहज हो उन तमाम लड़कियों से जो एक घुड़की पर घर के अन्दर डर कर दुबक जाती है। तुम गलत हो क्योकि एक बेटी,स्त्री का वास्तविक जीवन जी रही पर इरा तुमसे ज्यादा वो लिचड़ है जो एक पिता के पेट पर बेटी को देख गुद-गुदाने लगे अन्तरअंगो,जो एक पिता और पुत्री को एक साथ नहीं देख सकते। वो उस विष्ठा के समान है जो तुम्हे एक पुत्रि न जान तुम्हे गालिया और भद्दी मजाको के हवस समझने लगे,इरा तुम गलत होकर बहूत सही हो पर वो सही होकर सड़े हूए दुर्गंधित विष्ठा है। #लक्ष्मी_गौतम

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