सोचता हूं तुझे भुला दूं, वो जो पास मेरे निशानी है तेरा, सोचता हूं तुझे लौटा दूं। मुझे मालूम है तु नहीं लौटेगी, सोचता हूं मैं खुद को मिटा दूं। अब तो मालूम है हमें कोई और है मुसाफिर तेरा, सोचता हूं तेरा खंजर मैं उसके सीने मे उतार दूं। -अनंत सोचता हूं तुझे भुला दूं, वो जो पास मेरे निशानी है तेरा, सोचता हूं तुझे लौटा दूं। मुझे मालूम है तु नहीं लौटेगी, सोचता हूं मैं खुद को मिटा दूं। अब तो मालूम है हमें कोई और है मुसाफिर तेरा,