खामोशियाँ ---------- मेरी खामोशियाँ गर बोल पाती, इस दिल के शोर को जता पाती। मेरे जज़्बातो को समेट कर अल्फ़ाज़ों में ब्यान कर पाती है। मुमकिन नहीं तब तक इस दिल-ए-तंगी को मीटा पाना। दिल-ओ-दिमाग के दरमियान इख़्तिलाफ़ है। खैर के जुबान से मुंसिफ़ मुमकिन नहीं। गर मेरी खामोशी समझ सको तो बताना, माज़रा क्या है? #इख़्तिलाफ़ : Ikhtilaf (differences); #मुंसिफ़ : Munsif (decision making) #PoemOfTheDecade #खामोशियाँमेरी #अल्फ़ाज़ों #मुमकिननहीं #EnlightenAQUA #मेरीखामोशी