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मेरे प्यारे साथियो आप सभी को 'गुरुपूर्णिमा' की हार

मेरे प्यारे साथियो आप सभी को 'गुरुपूर्णिमा' की हार्दिक शुभकामनाएं।

माता -पिता जीवन में प्रथम गुरु के रूप में पूज्य हैं।वे जीवन देते हैं और जीवन को मूल्यवान बनाने के क्रम में कड़ी बनते हैं।

हमारी संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा सबसे प्राचीन और व्यवस्थित है।जीवन के दो पहलू तय किये 1. भौतिक, 2. आध्यात्मिक इन दोनों के विकास के लिए गुरुकुल परिपाठी और आश्रम स्थापित किये गए।

भगवान श्री कृष्ण के गुरु संदीपन ऋषि आश्रम व्यवस्था और आध्यात्मिक पहलू की उन्नति के आचार्य थे इसीलिए वे कान्हा को योगेश्वर श्री कृष्ण बना दिये।

भगवान राम गुरुकुल परम्परा में प्रशिक्षित किये गए और वे बेहतरीन मर्यादा पुरुष 
पुरुषोत्तम बनकर प्रतिष्ठित हुए।

गुरु और शिष्य परम्परा की ये धरोहर हम आज भी उत्सव और पर्व के रूप में मनाते आ रहे हैं आओ हम उन सभी गुरुओं को नमन करते हैं जिन्होंने समाज और राष्ट्र की उन्नति के साथ जीवन को सहज बनाने में अपना जीवन लगा दिया। मेरे प्यारे साथियो आप सभी को 'गुरुपूर्णिमा' की हार्दिक शुभकामनाएं।

माता -पिता जीवन में प्रथम गुरु के रूप में पूज्य हैं।वे जीवन देते हैं और जीवन को मूल्यवान बनाने के क्रम में कड़ी बनते हैं।

हमारी संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा सबसे प्राचीन और व्यवस्थित है।जीवन के दो पहलू तय किये 1. भौतिक, 2. आध्यात्मिक इन दोनों के विकास के लिए गुरुकुल परिपाठी और आश्रम स्थापित किये गए।

भगवान श्री कृष्ण के गुरु संदीपन ऋषि आश्रम व्यवस्था और आध्यात्मिक उन्नति के आचार्य थे इसीलिए वे कान्हा को योगेश्वर श्री कृष्ण बना दिये।
मेरे प्यारे साथियो आप सभी को 'गुरुपूर्णिमा' की हार्दिक शुभकामनाएं।

माता -पिता जीवन में प्रथम गुरु के रूप में पूज्य हैं।वे जीवन देते हैं और जीवन को मूल्यवान बनाने के क्रम में कड़ी बनते हैं।

हमारी संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा सबसे प्राचीन और व्यवस्थित है।जीवन के दो पहलू तय किये 1. भौतिक, 2. आध्यात्मिक इन दोनों के विकास के लिए गुरुकुल परिपाठी और आश्रम स्थापित किये गए।

भगवान श्री कृष्ण के गुरु संदीपन ऋषि आश्रम व्यवस्था और आध्यात्मिक पहलू की उन्नति के आचार्य थे इसीलिए वे कान्हा को योगेश्वर श्री कृष्ण बना दिये।

भगवान राम गुरुकुल परम्परा में प्रशिक्षित किये गए और वे बेहतरीन मर्यादा पुरुष 
पुरुषोत्तम बनकर प्रतिष्ठित हुए।

गुरु और शिष्य परम्परा की ये धरोहर हम आज भी उत्सव और पर्व के रूप में मनाते आ रहे हैं आओ हम उन सभी गुरुओं को नमन करते हैं जिन्होंने समाज और राष्ट्र की उन्नति के साथ जीवन को सहज बनाने में अपना जीवन लगा दिया। मेरे प्यारे साथियो आप सभी को 'गुरुपूर्णिमा' की हार्दिक शुभकामनाएं।

माता -पिता जीवन में प्रथम गुरु के रूप में पूज्य हैं।वे जीवन देते हैं और जीवन को मूल्यवान बनाने के क्रम में कड़ी बनते हैं।

हमारी संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा सबसे प्राचीन और व्यवस्थित है।जीवन के दो पहलू तय किये 1. भौतिक, 2. आध्यात्मिक इन दोनों के विकास के लिए गुरुकुल परिपाठी और आश्रम स्थापित किये गए।

भगवान श्री कृष्ण के गुरु संदीपन ऋषि आश्रम व्यवस्था और आध्यात्मिक उन्नति के आचार्य थे इसीलिए वे कान्हा को योगेश्वर श्री कृष्ण बना दिये।