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बार-बार यूँ ही आज़माकर न देख मुझे, भूल रहे हो तो

बार-बार यूँ ही  आज़माकर न देख मुझे, 
भूल रहे हो तो मुड़-मुड़कर न देख मुझे। 

हाँ बना रखा है मैंने ख़याली ताजमहल, 
तोड़ना ही है तो यूँ रुककर न देख मुझे।

चाहत नवाबी, हालत अपनी फ़कीर सी, 
छोड़ना है तो  यूँ खंगालकर न देख मुझे।

सामने बिखरा पड़ा है सामान ज़रूरत का,
कर न मन की, उसे मारकर न देख मुझे।

ख़र्चे की चर्चा नहीं 'धुन' सुकूँ की अर्ज़ी है,
सुनने की मर्ज़ी न तो आकर न देख मुझे।  ♥️ Challenge-529 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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बार-बार यूँ ही  आज़माकर न देख मुझे, 
भूल रहे हो तो मुड़-मुड़कर न देख मुझे। 

हाँ बना रखा है मैंने ख़याली ताजमहल, 
तोड़ना ही है तो यूँ रुककर न देख मुझे।

चाहत नवाबी, हालत अपनी फ़कीर सी, 
छोड़ना है तो  यूँ खंगालकर न देख मुझे।

सामने बिखरा पड़ा है सामान ज़रूरत का,
कर न मन की, उसे मारकर न देख मुझे।

ख़र्चे की चर्चा नहीं 'धुन' सुकूँ की अर्ज़ी है,
सुनने की मर्ज़ी न तो आकर न देख मुझे।  ♥️ Challenge-529 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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