स्त्री को स्त्री होना सिखलाते हो स्त्री को स्त्री होना सिखलाते हो, प्रकृति को रितुओं का क्रम समझाते हो, बंदिशों को सजा धजा कर कर्तव्य बनाते हो, वाह मियां बड़े काबिल हो, किसे भरमाते हो। मां-बाप की ड्यूढ़ी से पति के आंगन तक, लकीर सी पड़ी हुई है यम के आलिंगन तक,