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चल अपनी हर मुशीबत को, सिगरेट बनाते हैं। एक एक कर

चल अपनी हर मुशीबत को, सिगरेट बनाते हैं।  
एक एक कर के इसके, वज़ूद को मिटाते है।।
समझ कर  इसे दुनियाँ, एक तरफ से आग लगाते हैं।
बैठ कर कही कोने में, भूल कर सारी फिक्र
सब कुछ धुँए में उड़ाते है।।
चल अपनी हर मुशीबत को सिगरेट बनाते है।।
H.singh r.. wazud
चल अपनी हर मुशीबत को, सिगरेट बनाते हैं।  
एक एक कर के इसके, वज़ूद को मिटाते है।।
समझ कर  इसे दुनियाँ, एक तरफ से आग लगाते हैं।
बैठ कर कही कोने में, भूल कर सारी फिक्र
सब कुछ धुँए में उड़ाते है।।
चल अपनी हर मुशीबत को सिगरेट बनाते है।।
H.singh r.. wazud