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हमारे तो यूँ ही व्यस्तता में दिन ओ रात गुजरे थे, त

हमारे तो यूँ ही व्यस्तता में दिन ओ रात गुजरे थे,
तुमसे गुफ़्तगू न होने से सारे जज़्बात ठहरे थे।

सोचा था अब न लिखेंगे तुम्हारी तारीफ में कुछ भी,
लेकिन हमारी तारीफ के बिना कुछ अधूरी सी थी तुम भी।

फिर कुछ इस अदा में आकर तुमने दस्तक दी,
खुले बाल, काँधे पर दुपट्टा और निगाहें थीं झुकी झुकी।

जैसे ही हमारी आँखों से तुम्हारी आँखों का दीदार हुआ,
वैसे ही ये कलम कागज़ से मिलने को बेक़रार हुआ।

झुकना पड़ा फिर हमें भी इनकी ज़िद के आगे,
आखिर क्यों न झुकते, जो इतने मज़बूत हैं इन रिश्तों के धागे।

फिर से इस कलम ने कागज पर अपने ज़ज़्बात उतारे,
जिनको लिखे हुए बीत गए थे दिन इतने सारे।

अच्छा चलो ये वादा है कागज से इस कलम का,
सातों जन्म न सही लेकिन शायद इस जन्म का।

तो लिखते रहेंगे तुम्हारी तारीफ में यूँ ही टूटा फूटा सा,
उस साथ के लिए जो इस जन्म में रहा कुछ छूटा छूटा सा।

जब भी तुम्हारी मुस्कुराहट का हमें एह्सास होगा,
ये कलम खुद ब खुद अपने कागज़ के पास होगा।
#प्रखर_पटेल #मेरी_डायरी_से 
#my_words 

#solotraveller
हमारे तो यूँ ही व्यस्तता में दिन ओ रात गुजरे थे,
तुमसे गुफ़्तगू न होने से सारे जज़्बात ठहरे थे।

सोचा था अब न लिखेंगे तुम्हारी तारीफ में कुछ भी,
लेकिन हमारी तारीफ के बिना कुछ अधूरी सी थी तुम भी।

फिर कुछ इस अदा में आकर तुमने दस्तक दी,
खुले बाल, काँधे पर दुपट्टा और निगाहें थीं झुकी झुकी।

जैसे ही हमारी आँखों से तुम्हारी आँखों का दीदार हुआ,
वैसे ही ये कलम कागज़ से मिलने को बेक़रार हुआ।

झुकना पड़ा फिर हमें भी इनकी ज़िद के आगे,
आखिर क्यों न झुकते, जो इतने मज़बूत हैं इन रिश्तों के धागे।

फिर से इस कलम ने कागज पर अपने ज़ज़्बात उतारे,
जिनको लिखे हुए बीत गए थे दिन इतने सारे।

अच्छा चलो ये वादा है कागज से इस कलम का,
सातों जन्म न सही लेकिन शायद इस जन्म का।

तो लिखते रहेंगे तुम्हारी तारीफ में यूँ ही टूटा फूटा सा,
उस साथ के लिए जो इस जन्म में रहा कुछ छूटा छूटा सा।

जब भी तुम्हारी मुस्कुराहट का हमें एह्सास होगा,
ये कलम खुद ब खुद अपने कागज़ के पास होगा।
#प्रखर_पटेल #मेरी_डायरी_से 
#my_words 

#solotraveller