एक क़ागज़ उड़ा किसी के जज़्बात लिये, इश्क़ की राह में बढ़ने के आगाज़ लिये, उड़ते उड़ते पहुंचा एक बस्ती में, जैसे डूबते को किनारा मिला हो कश्ती में, बस्ती में लगी थी आग हर तरफ़, जैसे आया था कोई ज़ल्ज़ला पढ़ी थी जब बरफ़, वो कागज़ सिमट के रह गया अपने जज़्बातों में, फ़िर पढ़ी बारिश उन ही हालतों में, वो गल गया पूरी तरह पर ना छोड़ी उसने हिम्मत, जैसे ख़ुदा ने बक्षी हो उसको अपनी सहमत, फ़िर निकली चमकीली धूप और उजला वो, फ़िर कोरे क़ागज़ जैसा बन गया सजीला वो, फ़िर उढ़ने लगा उसका मन बाबस, और एक बार फ़िर गिर पढ़ा ज़मीन पर वो क़ागज़ #क़ागज़ #triptananwani #ballad #yqdidi #yourquote