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भोर की पहली किरण सी होठों की लालिमा है तेरी, समा

 भोर की पहली किरण सी होठों  की लालिमा है तेरी,
समाए हैं आंखों में अनंत समंदर नशे के   तेरे ए जान मेरी ।
 मेरे दिल पर गिराती है बिजलियां यह खुली जुल्फें तेरी,
 माथे की बिंदी की शोभा क्या कहूं तुझे  ए विश्व सुंदरी मेरी।
सादगी से भरी जो करती है मुझे वश में अपने हाय ये अदाएं तेरी। सावले से रंग की  ए मेरी जान खुदा कसम तेरे ऊपर कुर्बान है हर सांस  मेरी।
 तलवार से भी ज्यादा कटीली है आंखों में लगी कजरे की धार तेरी,
पायल तेरी करती है घायल एक अजनबी से दिल को सुनो ए मृगनयनी मेरी।

©Musafir ke ehsaas
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