कतरा कतरा जो पी रहा हूँ, यह ज़हर नाकामयाबी का, तुझे खुश करने के जतन कर रहा हूँ, न जा मेरी खामोशी पर, तेरे लिए ही जी रहा हूँ।। नाराजगी क्यों खामोश हो इस कदर क्या छुपा रखा है दिल में इतनी भी क्या नाराज़गी हमसे एक तेरे अपनों में हम भी शामिल हैं