बदन में मन में यौवन में जीवन में एक शोर है फिर उठता जनजीवन में बर्दाश्त की हर सरहद के पार होकर आग ही दिखती वक़्त के दर्पण में कहीं मिट्टी जलती कहीं हवा जलती है बददुआ की आग में हर दुआ जलती है एक अनचाही आग में तब ख़ामोश जंगल का हर एक दरख़्त जलता है जिस रिश्ते में ढूँढते रहे हम ज़िन्दगी आज वही रिश्ता कमबख़्त जलता है. ©malay_28 #आग