मैं वाकिफ हूँ, ज़माने की हर इक कातिल अदाओं से ना जीने दे खुलकर मुझे, ना मरने की दे मंजूरी, किसे जाकर कहैं हम हाल बेगुनाही का, सब कह दिया होता गर तलबगार होता, हमारा भी। ©Senty Poet #तकदीर #Shayar #Dil #Bechara #Dosti #Tanhai #humantouch