सरसी/ कबीर/ समुदर छंद* विधान 27 मात्रा प्रति चरण, 16-11 पर यति, चार चरण, - दो- दो चरण समतुकांत, चरणान्त गुरु लघु अनिवार्य । यहाँ हौसलों की उड़ान को,करना होता श्रम। भाग्य भरोसे कुछ मिलता है, पालो ना ये भ्रम।। लोग यहाँ पर बस कहते हैं, करना तुम ना शर्म। मनुज उसको यहाँ कहते जो,केवल करते कर्म।। मानव बनकर ही रहना तुम,यही तुम्हारा धर्म। फूँक-फूँक कर ही पग धरना है,मानो धरती गर्म।। वैर किसी से क्यों करना है,जानो सबकी खैर। मृत्यु को ऐसा यहाँ मानो,करने निकले सैर।। ©Bharat Bhushan pathak love poetry in hindi poetry quotes hindi poetry poetry in hindi hindi poetry on life #सरसी_छंद #छंदज्ञान #छंदशः_रचनाएँ#प्रयत्न