रसीदी टिकट पढ़ने केे बाद केे ख्यालात अमृता प्रितम केे बारे में कुछ भी कहने के लिये मैं बहुत छोटी हूँ.किसी के लिये भी अमृता होना मुमकिन नहीं.मगर इमरोज?इमरोज तो कोई हो ही नहीं सकता.कि कोई अमृता किसी इमरोज की पीठ पर किसी साहिर का नाम लिखे और इमरोज उतने ही प्यार से मुस्कुरा दे जैसे उसकी पीठ पर अमृता ने उसका ही नाम लिखा हो. जब की खबर है उसे ये साहिर का नाम है इमरोज का नहीं.और यूं ही 40 साल अपनी अमृता से अपनी पीठ पर साहिर का नाम मुस्कुरा कर लिखवाते हुए गुज़ार देना ये इमरोज हो जाना है.मगर कोई इमरोज तो हो ही नहीं सकता. ©Chanchal Chaturvedi #रसीदीटिकट #अमृता_प्रीतम #BookReview #peace