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ए ज़िन्दगी और कितने इम्तहान लेगी तेरे सवालों से पर

ए ज़िन्दगी और कितने इम्तहान लेगी तेरे सवालों से परेशान हो गया हूँ
मेरे अपने ही तो है कातिल मेरे उनकी हर करामात से हैरान हो गया हूँ 
न जाने कितने जमाने मुझमें बसर किया करते थे अब वीरान हो गया हूँ 
ऐ मौत जरा जल्दी से आ कि अब चंद लम्हों का मैं मेहमान हो गया हूँ परेशान हो गया हूँ
ए ज़िन्दगी और कितने इम्तहान लेगी तेरे सवालों से परेशान हो गया हूँ
मेरे अपने ही तो है कातिल मेरे उनकी हर करामात से हैरान हो गया हूँ 
न जाने कितने जमाने मुझमें बसर किया करते थे अब वीरान हो गया हूँ 
ऐ मौत जरा जल्दी से आ कि अब चंद लम्हों का मैं मेहमान हो गया हूँ परेशान हो गया हूँ