बीत गया सो बात गई,अब नया सवेरा लाते हैं, मानवता के वही तराने,फिर से मिलकर गाते हैं। मर्यादा फिर पढ़े राम की,कृष्ण का कर्माधार पढ़ें, सूर,कबीरा,तुलसी के आखर फिर दोहराते हैं। तेरी भी है मेरी भी ये पतित पावनी धरा भारती, भारत के नव युग के मिलकर फिर से स्वप्न सजाते हैं, नर हो न निराश करो मन को,शिक्षा धारण की थी जो, नव चेतन के उद्भव हेतु सबको आज जगाते हैं। मेरे भाग का मैं भागी अपने के बन जाओ तुम, तिनका तिनका मिलकर फिर से घर को अपने बनाते हैं। बार बार टूटे थे हम,बार बार आघात हुए, फिर भी उठकर खड़े हुए,तभी आर्य कहलाते हैं। मिलकर फिर से भारत मां के लाल सभी मतवाले से, जन गण मन का शंखनाद अपने अंतस से गाते हैं। दीपेश ©deepesh singh #azadkalakar #ajadkalakar #Independence2021