#OpenPoetry उस दर्द में सुकून था जो तू मेरा गुरुर था ना है तू मेरे साथ अब ना है बची कोई आस अब बहुत बिता ली आंसुओ के साथ मैंने रात अब छुआ है तेरे जिस्म को ना है बची तू पाक अब तेरे जिस्म के बाजार में खरे हैं सौ हजार अब जो चाह ले कोई को तो हो जाना बवफ़ादार अब है जा रही है दूर तू चली जा अब विमान सा तेरे लौटने की ऐसे भी ना है बची कोई आस अब मग़रूर था तेरे इश्क़ मैं हुन बन चुका मैं राख अब मेरे नफरते सायरी मैं तू हो रही नीलम अब के जिस गली से जायेगे तू बेवफा कह लाएगी के कर दूंगा इस कदर में तिझे विख्यात अब तेरे लौटने की ऐसे भी ना है बची कोई आस अब तेरे लौटने की ऐसे भी ना है बची कोई आस अब #first_poetry #open_poetry #writing_compitition #karansinha