क़िस्सा ही भूल गया क़िस्सा सुनाने वाला। क़िस्सा भी यूँ था कि बस नींद उड़ाने वाला।। तर्क-ए-वादा का मैं इल्ज़ाम लगाऊँ किस पर। मर गया हादसे में अहद निभाने वाला।। शम्अ' बुझते ही हवा से यही पूछेंगे हम। जान लेता भी है क्या जान लुटाने वाला।। दाद देंगे उसे तारीफ़ करेंगे उसकी। भूल जाता है अगर हमको भुलाने वाला।। जिस्म हर एक मुसीबत में सुकूँ माँगता है। है कहाँ मेरे लिए हाथ उठाने वाला।। कोई पानी में मिलाए तो वो पानी का हो। मिट्टी का था हमें मिट्टी में मिलाने वाला।। बाँध ले पाँव में जंज़ीर की रस्सी अपने। अब तो है वक़्त भी रफ़्तार बढ़ाने वाला।। मैं फ़क़त तर्क-ए-तअल्लुक़ ही सिखा सकता हूँ। मौत से डरता है ख़ुद मरना सिखाने वाला।। उस पे भी दिल है कि एहसान-फ़रामोश मेरा। इक ही तो है दिलों का क़र्ज़ चुकाने वाला।। मौत की भी तो कोई आरज़ू होती होगी। वैसे दुश्मन ही है मरने से बचाने वाला।। दर-हक़ीक़त किसी ने मुड़ के नहीं देखा 'रिदम'। हाल फिर ज़ीस्त का ऐसा कि दिवाने वाला।। ©Rhythm दर-हक़ीक़त किसी ने मुड़ के नहीं देखा 'रिदम'। हाल फिर ज़ीस्त का ऐसा कि दिवाने वाला।। #RhythmPoetry #maa #Love #dost #life #shayari #ghazal #urdupoetry