•कलम• कलम में मेरी भरी है स्याही, जो लिखती हैं अल्फाज़ मेरे हृदय के। कलम में मेरी भरी है स्याही, जो लिखती हैं सफ्ह़ा हर रोज एक अपने हुक़ूक की। कलम में मेरी भरी है स्याही, जो लिखती हैं आसुदगी अपने अज़ाज-तरो के लिए। कलम में मेरी भरी है स्याही, जो लिखती हैं प्यार के रहजनों की कहानी। कलम में मेरी भरी है स्याही, जो लिखती हैं ख़ालिक़ के मेहर। कलम में मेरी है स्याही, जंग के मौसम को बदलने की। •कलम• कलम में मेरी भरी है स्याही, जो लिखती हैं अल्फाज़ मेरे हृदय के। कलम में मेरी भरी है स्याही, जो लिखती हैं सफ्ह़ा हर रोज एक अपने हुक़ूक की।