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फ़िर ठीक अगले पल, रौशनी की इक किरण फूट

फ़िर ठीक अगले पल, 
           रौशनी की इक किरण फूटती है
                                और मिट जाता है छाया हुआ  अंधेरा 
                                                              बेवक्त की इक बारिश होती है 
                                                                           और कर देती है  पेड़ों को फिर से हरा,  
 इक हंसी से पिघलने लगती  है मन पे जमी लंबी उदासी , 
इक और बढ़े हुए क़दम से आखिरकार तय हो जाता है सफ़र । ।

 "तुम हार मत मानना 
               लड़ते रहना  नाउम्मीदी से , निराशा से ,    उदासी से 
                                         उस एक पल के आ जाने तक "।।

                                             -हृषिकेश शुक्ला 'ऋषि'

©Hrishikesh Shukla
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