धीरे-धीरे बन जाता हैं मिलने जुलने का बहाना अब नहीं मुस्कुराया जाता हैं उसे पा कर फिर से खोना ऐसा दर्द-ए-दिल होता हैं जैसे हो कोई प्रित पुराना आख़िर सिखा कहा से हैं सामने आने पर मुस्कुराना ©Eram Siddiqui धीरे-धीरे बन जाता हैं मिलने जुलने का बहाना अब नहीं मुस्कुराया जाता हैं उसे पा कर फिर से खोना ऐसा दर्द-ए-दिल होता हैं जैसे हो कोई प्रित पुराना