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घनघोर अंधेरे में कांपती है, देह। भय के आभास होते ह

घनघोर अंधेरे में कांपती है, देह।
भय के आभास होते ही, 
जुगनू से थिरकते हो तुम।
मेरे आस - पास।
क्या कोई दीपक हो तुम?
चलते हो तुम, ठीक मेरे पीछे।
क्या कोई परछाई हो तुम।
जो न दिन ढलने पर ढहती है,
न भोर होते ही सिमटती है।
क्या भूल गए हो,
 तुम भी अपना रास्ता?
क्या तुम्हारा रास्ता भी,
 उतना ही धूमिल है।
जितना की मेरा?
और तुम भी, 
अपने पथिक की तलाश में,
अपने रास्ते  को खंगालते हुए।
तुम पहुंच जाते हो मेरे इर्द गिर्द ।
मुझे दिशा दिखाने।

©Ruksar Bano #stayhappy #जिंदगी_का_सफर #नोजोटोहिंदी #nojotonazm
घनघोर अंधेरे में कांपती है, देह।
भय के आभास होते ही, 
जुगनू से थिरकते हो तुम।
मेरे आस - पास।
क्या कोई दीपक हो तुम?
चलते हो तुम, ठीक मेरे पीछे।
क्या कोई परछाई हो तुम।
जो न दिन ढलने पर ढहती है,
न भोर होते ही सिमटती है।
क्या भूल गए हो,
 तुम भी अपना रास्ता?
क्या तुम्हारा रास्ता भी,
 उतना ही धूमिल है।
जितना की मेरा?
और तुम भी, 
अपने पथिक की तलाश में,
अपने रास्ते  को खंगालते हुए।
तुम पहुंच जाते हो मेरे इर्द गिर्द ।
मुझे दिशा दिखाने।

©Ruksar Bano #stayhappy #जिंदगी_का_सफर #नोजोटोहिंदी #nojotonazm