बचपन था एक अनजाना सा, कुछ जाना पहचाना। सा, शौक बड़े अरमानों के कुछ जाने से पहचाने से। नादान बड़ा था दिल मेरा एक छोटा सा अनजाना सा। ना जाने कब क्या कह बैठे ,कुछ ना समझी फरमाने सी। दिल दे किसी से बोल रहा, कुछ ये ले दो कुछ वो ले दो।ना अंजाना सा वह बचपन था ,कुछ बातें जो ना बोल सका ।वह बात बड़ी अंजानी सी अलबेली सी मस्तानी सी।उड़ना चाहे मन चाहे जब, गिरना चाहे मन चाहे जब। दिल मन की बातों में डोल रहा, है हिचकोल रहा मन बोल रहा।कहासुनी जब हो जाती, ना कुछ कह पाती ना सुन पाती।बातों बातों में रो आती हंसने की बात सता जाती। छोटे-छोटे वह झूले थे छोटे से खेल खिलौने थे।कुछ साथी थे वह बचपन के जब साथ हाथ मिल जाते थे। कुछ बात बात पर अब देखो,ना जाने कब क्या होने वाला। कुछ बात बड़ी अंजानी से कुछ याद बड़ी पहचानी सी ,बचपन था एक अनजाना सा कुछ जाना पहचाना सा poetry (bachpan)