सभी तो टूट गये पत्ते पेड़ से तूफान छुपे खड़े थे कितनी देर से रिश्तों का बोझ था तो वो भी उतर गया चलो तुम भी गैर से और हम भी गैर से कौन सी मजबूरी ने तुम्हें मेरा कर दिया था क्यों आज़ाद हो गये मेरे हक और मेहर से कभी ये गांव मोहब्बत के हुआ करते थे फिर क्यों नज़र आने लगे ये शहर से हमें इस पार और तुम्हें उस पार कर दिया मैं कहां हूं मतलब नहीं तुम तो पहुंच गये खैर से बात ज़माने में ले आये हो फैसला कौन करेगा कौन कितना टूटा एक दूसरे के अंधेर से पहुंच तो मैं भी गया था पता नहीं मिला पेड़ उखाड़ लिया था किसी ने मुंडेर से शायर - बाबू कुरैशी #किसकी लगी नज़र