रो लेता हूं मुझे नहीं पता कि आख़िर इसकी वज़ह क्या थी और क्या है, पर नहीं देख़ सकता मैं तुम्हारी इन नशीली आंखोंमें कोई नमी। रो लेता हूं मैं भी जब भी देख़ता तुम्हें ऐसे उदास जो तुम रहते है, ना जानें क्यों ख़लती हैं मुझे तुम्हारी प्यारी आंखों की यह नमी। बड़ा ही ख़ुदगर्जं और ज़ालिम जमाना कि अब यहा आ गया है, हँस देते है लोग जब देख़ते किसी और को ऐसे उदासी की कमी। लगता हैं उन्हें कि आसान है किसी को यूंही तड़पाना एक खेल है,