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कुछ सवेरे की चमक फीकी थी, कुछ आंखों पर अंधेरा था,

कुछ सवेरे की चमक 
फीकी थी,
कुछ आंखों पर अंधेरा था,
लूटना किसे था साकी,
हम तो बरबाद होकर
निकले थे। #बर्बाद #लूटना
कुछ सवेरे की चमक 
फीकी थी,
कुछ आंखों पर अंधेरा था,
लूटना किसे था साकी,
हम तो बरबाद होकर
निकले थे। #बर्बाद #लूटना
tarundogra4415

Tarun Dogra

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