उलझनें बढ़ती जा रहीं बावरे मन की उलझन न सुलझे, सुलझाऊँ तो सुलझाऊँ मैं कैसे उलझनें हैं कि बढ़ती ही जा रही हैं, इन्हें कम करूँ तो मैं कैसे भँवर में फँसी है मेरी जीवन नैय्या, पार उतारूँ तो उतारूँ मैं कैसे राहों में चलना हुआ मेरा मुश्किल, मंजिल तक पहुंचूँ तो मैं कैसे उलझन में उलझा रहता मेरा मन, उलझन से निकलूँ तो मैं कैसे ना कोई संगी,ना साथी हाल-ए-दिल,किसको सुनाऊँ और मैं कैसे रहती ही नहीं है सुध-बुध हमें अब, किसको बताऊँ और मैं कैसे जिम्मेदारियाँ निभाने में जीवन गुजरता, मन की करूँ तो मैं कैसे दिल सुलगता है और आहें भी भरता है, इसको समझाऊँ तो मैं कैसे मुश्किल भरी राहों में हैं हरदम अंधेरे, दिए गर जलाऊँ तो मैं कैसे मन की उलझन हरपल डँसती ही रहती है, इससे बचूँ तो मैं कैसे उलझनों के संग रहकर जीना हुआ मुश्किल, अब जिऊँ तो मैं कैसे कोई तो बता दो,कोई तो सीखा दो,उलझनों से उबारों हमें चाहे जैसे, कोई तो तरीका होगा,उलझन मिटाने का, ढूँढ़ो उपाय बताओ चाहे जैसे। -"Ek Soch" उलझनें बढ़ती जा रही हैं। #collabwithकोराकाग़ज़ #कोराकाग़ज #उलझनें #Yqbaba #Yqdidi